इस्लाम में फ़तवा जारी करने की पद्धती है | यह फ़तवा कभी निर्देश के स्वरूप में तो कभी आदेश के स्वरूप में होता है | अलग-अलग देशों में फ़तवा जारी करनेवाली संस्थाने होती है | हिन्दुस्थान में भी ऐसे कई फतवे जारी किये जाते हैं | सामान्यतः हिंदुस्तानी मुस्लिम इन फतवों को जानता है उर्दू वार्तापत्रोंसे | और गैर-मुस्लिम जनता को अन्य वार्तापत्रोंसे इन फतवों से अवगत किया जाता है | अभी सामान्य मुस्लिम इन फतवों के प्रति कितनी श्रद्धा रखता है, और किस सीमा तक उसका पालन करने का प्रयास करता है यह विवाद का विषय हो सकता है | परन्तु फ़तवा अपने आप में चर्चा का निमंत्रण देता है, विवादों में लिपटा जाता है और संदेहों के घेरों में आता है |
दारुल उलूम देवबंद ने हाल ही में एक फतवा जारी किया है | यह फतवे के बारे में मुझ जैसे हिंदू को वर्तमानपत्रोंसे पता चला | मैं किसी वार्तापत्रोंको नाम लेकर इस में घसीटना नहीं चाहता, किन्तु उनकी गलती का दर्शन कराना अवश्य चाहूँगा | उन्होंने जाँच-परख कर के ही वृत्त प्रसृत करने चाहिये | अन्यथा गलत संदेश सामान्य जनता में जाता है | पत्रकार इस दायित्व को प्रमाणिकता से कब निभाएंगे?
वास्तव में यह लेख मैंने फतवे का विरोध करने हेतू लिखना तय किया था | लेख के लिए जैसेही मैं फतवे को मूल रूप में पढ़ने लगा, मैं समझ गया की मेरी धारणाएँ गलत थी | अपितु मैंने बदले हुए विचार को भी लेख के रूप में लिखना उचित समझा | सत्य की खोज में एक कदम बढ़ गया | आखिर विचारप्रवाह अपनी अनवरत यात्रा में कई मोड लेता है !
छपे हुए वृत्तों के अनुसार ‘रक्तदान करना इस्लाम के विरोध में है, तथा शरीर के किसी भी भाग को दान देना इस्लाम के तत्वों के विरोधी है’ | कुछ ने छपा – “Donating blood, organs un-Islamic : Darul fatwa”. ऐसे में किसी के भी मन में आता है की यह फ़तवा गलत संदेश प्रेषित करता है | इसके विरोध में तुरंत प्रतिक्रियाएं भी आयी | परन्तु सत्य क्या है?
फ़तवा कहता है की अपना शरीर अल्लाह का है, अपना हक उसपर नहीं है और इसीलिये किसी भी हिस्से की विक्री करना इस्लाम के विरोध में है | यह तर्क ठीक है | जिस तरह से किडनी और अन्य भागोंकी चोरी, तस्करी और विक्री चलती है, गैर मुसलमानों ने भी यह फतवे को गौर से देखा तो कुछ बुरा नहीं | ‘अपना शरीर ईश्वर की देन है’ यह विचार हिंदू तत्वों में अनुस्यूत है | इसलिए फतवे के इस निर्देश में मुझे कुछ गलत नहीं दिख रहा | विक्री के साथ-साथ भेंट देना भी अनुचित करार दिया है (selling and gifting)| भेंट भी हम उसी को देते है जिसका कुछ उपकार है या फिर अपनी कुछ अपेक्षा है, यह अपेक्षा प्रेम, आशिर्वाद, मेहेरबानी ऐसे रूप में भी हो सकती है | परन्तु ‘दान’ की भावना अनोखी है | वह विक्री और भेंट के दायरे के बाहर है | किसी अपेक्षा के बिना देना ‘दान’ का अविष्कार है | अपने पुराणों में कर्ण, शिबी राजा, भामाशाह, श्रीराम जी आदि महापुरुषों ने अपने उदात्त जीवन से इस दान की भावना को प्रस्तुत किया है | ऐसे दान का उल्लेख (विरोध) इस फतवे में नहीं है | दान की भावना हिंदुस्तानी संस्कृती की अनमोल धरोहर है |
आगे रक्तदान के बारे में फ़तवा कहता है की केवल आपातकाल (emergency) और जोर-जबरदस्ती (compulsion) के समय रक्तदान किया जा सकता है | रक्तदान की आवश्यकता वर्तमान के आतंकवाद से पीड़ित विश्व में आपातकाल जैसी ही है, इस तथ्य को मुसलमान भलीभाँति समझते है |
| दहशतगर्दों से लढना सभी का कर्तव्य है | और इसीलिये ऐसे ‘वैश्विक आपातकाल’ में रक्तदान करना होगा, यह कुछ मुस्लिम विचारवंतों के लेखन/वक्तव्य से भी ध्वनित होता है (मौलाना वाहीदुद्दीन खान) |
सामान्यतः गर्भपात करना भी इस फतवे में गलत माना गया है | परन्तु गर्भवती स्त्री यदि असह्य वेदनाओंका सामना करने के लिए शारीरिक दृष्टी से बहोत कमजोर है, असमर्थ है या वह अपने जान को घबराती है (जीवन-मृत्यू की चिंता करती है) तो वह गर्भपात करा सकती है | अभी ऐसे चीजों में उपासना पद्धती को लाना, ऐसे निर्देश रिलीजियस संस्थानों ने देना उचित या अनुचित इसपर विवाद हो सकता है | हाल ही में पोप ने दिए हुए बयान पर मैंने मेरे विचार प्रकट किये हैं (http://vikramwalawalkar.blogspot.com/2010/11/condoms-conundrum.html) |
वैसे इस फतवे में इतना बवाल मचाने जैसा कुछ है नहीं, जितना मिडिया ने प्रस्तुत किया है | केवल कुछ कदम सत्य की और बढ़ने के प्रयास |
संदर्भ :-
सत्य वार्ता.... कुछ जाने बगैर छापना आजकल के समाचारपत्रों का व्यवसाय हैं.... और उनका पर्दाफाश करना आपका व्यवसाय....!
ReplyDeleteबहूत उत्तम ब्लाग.... लिखते रहना....!
विक्रम जी, नेहमीप्रमाणेच सुंदर लिखाण. हिंदीतूनही मुशाफिरी सुरु केलीत. अभिनंदन!!! 'अल्ला'वर एकांतिक निष्ठा हा इस्लामचा अविभाज्य घटक आहे. त्याच्यापुढे सारासार विचारशक्तीही तोकडी पडते. रक्त, किडनी, नेत्र, देह, इ. चे दान व विक्री सुद्धा होऊ शकते. त्याला हिंदू समाजातून अजिबात विरोध होत नाही. मुळात दान / विक्री हे दात्याच्या/विक्रेत्याच्या इच्छेनुसारच होते. जोपर्यंत ते समाज धारणेला घातक ठरत नाही, तोपर्यंत त्याला कोणाचाच विरोध असण्याचे कारण नाही. उदा. जर मला पैशांची आत्यंतिक गरज असेल तर मी माझी किडनी विकून पैसे मिळवण्यास कोणाचा विरोध का असावा. त्या निर्णयाला माझा व्यक्तीगत निर्णय का मानू नये?अर्थात, बहुदा भारतात किडनी व इतर अवयव विकायला बंदी आहे. मला ते नक्की माहीत नाही. पण मुद्दा असा आहे की ह्या गोष्टी धर्माच्या (रिलीजन ह्या अर्थाने) चौकटीत का बसवाव्यात? व त्याकरता बाजूने किंवा विरोधी फतवे का काढावेत? असो. सहज मनात आले म्हणून लिहिले.
ReplyDeleteDear Vikramji
ReplyDeleteAaj pahilyandach tumche vicharpravartak likhan vachanat aale. Khupach awadale. Vinay Soman yanchi pratikriya pan chhanach aahe.
apli mail me mazya sarv mitrana forward keli aahe.
Nandan Pendse
@ राजेश जी - आप जैसों का सराहना हमें उत्साह प्रदान करते रहता है |
ReplyDelete@ विनय जी - प्रतिक्रियेबद्दल धन्यवाद.
@ नंदन जी - प्रतिसादाबद्दल धन्यवाद. असेच वाचत रहा आणि प्रतिक्रिया कळवत रहा. त्याने उत्साह वाढतो. नियमित अपडेट्स मिळण्यासाठी 'फॉलो' करा.