"Truth can be stated in a thousand different ways, yet each one can be true." - Swami Vivekanand

Thursday, January 6, 2011

हिंदुधर्मो विजयताम् |


पुणे के समीप पिरंगुट स्थानपर स्थित है ‘झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई लड़कियों की सैनिकी स्कूल’ | वहाँ इस ठंडी के सुहाने मौसम में उमड़ पडी थी भीड़ हिंदुत्व के पावन सिंधु में विहरनेवालों की | निमित्त था ‘विश्व संघ शिविर’ |

भारत में हिंदुत्व को लेकर चलनेवाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक अनुशासनबद्ध, बलशाली एवं सुसंस्कृत लोगों का संगठन है | हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोनेवाला विचार है हिंदुत्व | और संघ ने अपनाई है अनूठी कार्यपद्धती - शाखा ! घंटेभर की शाखा से निर्माण हुए स्वयंसेवक अन्यान्य भागों में जाकर शाखाएँ प्रारंभ करने लगे | ‘एक दीप से जला दूसरा’ | देशभर में फ़ैली हिंदुत्व की लहर |

भारत के बाहर रहनेवाला हिंदू भी पूरी तरह से असंगठित था | वहाँ के हिंदुओं को संगठित करने का कार्य प्रारंभ हुआ सन १९४७ में | दो स्वयंसेवक जहाज से  केनिया जा रहे थे | डेक पर परिचय हुआ और दोनों को ‘स्वयंसेवक’ होने का पता चल गया | वहीं फिर सूर्यसाक्षी से हुई संघ की प्रार्थना | यही भारत के बाहर की ‘पहली शाखा’! बाद में केनिया, मोरिशस, सुरिनाम, जर्मनी, अमरीका, इंग्लैंड, रशिया ऐसे देशों में नियमित रूप से शाखाएँ चलने लगी |
और धीरे-धीरे समय के साथ यह कार्य भी बढ़ा | परमपूजनीय डॉक्टर जी ने जो स्वप्न संजोया था, उस दिशा में कई कदम साथ में आगे बढ़ने लगे | भारत में भी और भारत के बाहर भी | भारत के बाहर हिंदू संगठित रूप से कार्यक्रम करने लगे, विश्वबंधुत्व के आवाज को, आवाहन को बुलंद करने लगे |

कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण हेतू चलते हैं संघ शिक्षा वर्ग | इन वर्गों में विभिन्न भागों से स्वयंसेवक एकत्रित होते हैं, रहते हैं और अपनत्व के भाव की अनुभूती करते हैं | (http://vikramwalawalkar.blogspot.com/2010/07/blog-post_11.html) | इसी कार्यपद्धती के अनुरूप भारत के बाहर जहां संघ का काम चलता है वहाँ भी वर्ग होते है | परन्तु यह कार्यकर्त्ता एकत्रित आते हैं ‘विश्व संघ शिविर’ हेतू | पाँच वर्षों में एक बार भारत में होता है यह शिविर | २००० साल में केशवसृष्टी, मुंबई में तथा २००५ में गांधीनगर में संपन्न हुआ और इसी शृंखला में पुणे में हुआ २०१० का शिविर |

३५ देशोंसे ५१७ स्वयंसेवक-सेविकाएँ उपस्थित थी | इन में थायलैंड, श्रीलंका, मलेशिया, मोरिशस, अमरीका, जर्मनी, सुरीनाम, गयाना, केनिया, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रान्स और ऐसे अन्य देशों से कार्यकर्त्ता उपस्थित थे | ५ दिन के शिविर का जाहीर समारोह बालेवाडी स्टेडियम पर संपन्न हुआ |
मंचपर उपस्थित थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूजनीय सरसंघचालक जी मोहनजी भागवत, प्रमुख अतिथी विख्यात उद्योजक श्री. अभय फिरोदिया, राष्ट्र सेविका समिती की प्रमुख संचालिका माननीया प्रमिलाताई मेढे, और अन्य महानुभाव | स्टेडियम पर उमड़ पडी थी भीड़ राष्ट्रभक्त नागरिकों की | प्रस्तुत हुए कार्यक्रमों में पुणे महानगर और पश्चिम महाराष्ट्र प्रान्त के घोषवादकों का तथा रा. स्व. सेविका समिती के सेविकाओं द्वारा घोष के आकर्षक प्रात्यक्षिक हुए | संघशाखाओं के बाल स्वयंसेवकों ने शिवराज्याभिषेक का समारोह आखों के सामने खड़ा किया, रोमांचित कर उठे तुतारी के उच्चनिनादित स्वर |


पिम्परी से आये हुए बाल धुन में बजा रहे थे योगचाप (लेझीम) | घाटी लेझीम का अलग-अलग तालों पर एकसाथ बजना और लयबद्धता का प्रदर्शन यही साबित कर रहा था की उसी पुणे महानगरी में इन बालों को तैयार करनेवाले सैंकडो ‘दादोजी कोंडदेव’ हैं और उन में से कई उस स्टेडियम की भीड़ में उपस्थित थे | एक पुतला हटने से कुछ भी नहीं होता | क्योंकी राष्ट्रनिर्माण का कार्य पुतलों के नहीं पुरुषार्थ के आधार पर होता है |

विश्व संघ शिविर के शिक्षार्थीयों ने दंड के और व्यायामयोग के प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किए |


प्रमुख अतिथी द्वारा दिया हुआ भाषण महत्वपूर्ण और सुसंबद्ध था | उन्हों ने संघ के स्वयंसेवकों की सराहना करते हुए ऐसे कार्य की आवश्यकता अधोरेखित की | जी.एन.पी बढ़ रहा है वह सरकार के कारण नहीं, अपितु आम जनता के कारण | और संभवतः सरकार उसपर ध्यान नहीं दे रहा है इसीलिये प्रगती हो रही है | आज चारों ओर जो घोटाले ही घोटाले दिखाई दे रहे है उनपर टिप्पणी करते हुए उन्होंने शासन कों आड़े हाथ लिया और मुझ जैसे कई उद्योजक साफ-सुथरा एवं भ्रष्टाचारमुक्त वातावरण चाहते हैं ऐसा कहा | केवल आर्थिक प्रगती ऐसे मूल्यहीन वातावरण में देश कों उन्नत नहीं बना सकती |  फिर हुआ भावपूर्ण एकल गीत | ‘बोधयित्वा संघभावं, नाशयित्वा हीनभावं..नवशताब्दे कलियुगाब्दे, हिंदुधर्मो विजयताम्’ |

शीतल मलयसमीरों के साथ सायंकाल के प्रकाश में गीत की उत्कट स्वरलहरें वातावरण कों और भावविभोर बनाती चली | परमपूजनीय सरसंघचालक जी का उद्बोधन सुनने के लिए सभी आतुर थे |

‘हिंदू दहशतवाद’ यह एक भ्रामक संकल्पना है, कारण ये दो शब्द परस्परविरोधी है | पहले ‘हिंदू दहशतवाद’ शब्दप्रयोग हुआ, फिर जबरदस्त प्रतिक्रिया पाने पर उसे ‘भगवा आतंकवाद’ कहा गया, और अभी वह बदल कर ‘बहुसंख्यक आतंकवाद’ यह शब्दप्रयोग प्रचलित करने का षड्यंत्र चल रहा है | पाकिस्तान ने भी कभी नहीं कहा यहाँ के जनता के बारे में, वह काँग्रेस कह रही है | ‘हिंदू’ को कभी अमरीका, रशिया, युरप में दहशतवादी नहीं कहा गया, परन्तु काँग्रेस ने करार दिया | इससे भारत की आतंकवाद विरोधी लढाई में बाधा आ सकती है, ह कमजोर हो सकती है | राज्यकर्ताओं पर जब कुर्सी बचाने का संकट आता है, तो वे संघ कों निशाना बना देते है, यह तो इतिहास है | संघ स्वयंसेवकों जैसे सुशील, सच्छील, सुसंस्कृत लोगोंके सिवा और किसको बली का बकरा बनाया जा सकता है? परन्तु  हिंदुत्व के विरोध में आनेवालों का जो होता है वही इनका भी होगा ऐसा उन्होंने इतिहास का स्मरण कराते हुए कहा |

विश्व में विकास हुआ है | सुख मिलता है, परन्तु समाधान नहीं | हिंदू जीवनदर्शन और हिन्दुस्थान की ओर विश्व निहारता है तो समाधान और शांति का मार्ग ढूंढने के लिए | हिंदुत्व ही विश्वबंधुत्व और शांति के पथ पर मनुष्यता को अग्रेसर बना सकता है | विश्व एक हो रहा है, कारण वह एक ‘ग्लोबल मार्केट’ बना है, ऐसा पश्चिमी चिंतन है, परन्तु हिंदुत्व “अयं निजः परो वेति, गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम्” का उद्घोष युगों से करता आ रहा है | विश्व में ‘सक्सेस स्टोरी’ में लिखा जाता है, “he came, he saw and he conquered”, उसके आगे क्या? आगे क्या होना है, “he came, he saw and he conquered and then one day, he died!” परन्तु हिंदू चिंतन ही बताता है की विश्व और संसाधन केवल उपभोग की वस्तू नहीं, अपितु कुछ देने की, और त्याग की अपेक्षा करता है | स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा था की हिंदू को भगवान शंकर जी जैसे स्वयं विष प्रशन कर औरों को सुरक्षित रखने की लोककल्याणकारी भूमिका निभानी है | संत ज्ञानेश्वर ने अपने पसायदान में जो विश्वमंगल की प्रार्थना की है उसी को लेकर संघ चलता है | और इन सभी कारणों के लिए हिंदू का सुसंगठित होना आवश्यक है | संघ का कार्य ईश्वरी कार्य है, यह विश्वास सभी के मन में है, और उसी दृढता के साथ हम आगे बढते हैं |











संदर्भ :-




      2.  www.hssuk.org
      3.  www.sanghparivar.org
      4.  www.geetganga.org

Monday, January 3, 2011

Dr. Binayak Sen : wait & watch.

Chhattisgarh Court sentenced Dr. Binayak Sen life imprisonment over charges of sedition. Court linked Dr. Sen to Maoist movement and his active participation in their communications. After the judgment came out, there was great hue and cry nationwide. Not only our human rights organizations and intelligentsia thronged to condemn, criticize and question the verdict, but also international organizations.

We did not see such media hype to hang Afzal, who is sentenced to death by the Supreme Court. The savage beast is still in jail waiting for either natural death or for rescue and return in exchange with hijacked plane. No human rights organizations, national or international, coming forward in demand of punishment to such a gross violator of human rights.

A new trend of ‘media trial’ is evident in cases like Narendra Modi, Sohrabuddin, Ishrat Jahan, Swami Lakshmanand Saraswati in Kandhmal etc. Media is considered as fourth pillar of democracy. But it seems involved in carrying out a function which it is not supposed to. The judiciary is sufficient to try a person. Media is to recognize, report, track and trace. Instead media gives its own certificate of ‘innocence’ or ‘guilt’. Why media boasts its opinion on viewers? We very well know who handles the media and how. These handlers have made news agencies puppets in their hands. For this reason the media has forgotten its functions and instead it is focusing on their feeders to facilitate their fictions.

Also, the role of international organizations is worth taking note. The Amnesty International which presents itself as a champion and custodian of Human Rights, has condemned the verdict saying, Amnesty International has repeatedly called on the Indian authorities to immediately drop all the charges against Dr Binayak Sen.” In international politics such institutions/organizations are called as ‘non-State actors’. But States keep a strong hold over these for fulfilling their own motives behind the curtain. Bharteey Court has given its verdict over serious charges of seditious activities. It relied on Chhattisgarh Special Public Safety Act, 2005, and the Unlawful Activities Prevention Act, 2004. Amnesty has nothing to do with that as it is internal matter of a nation concerning its security and sovereignty. So, the largest democracy and its judiciary will see to it. Amnesty has a great scope for its noble work in the ‘middle-east’ Asia, China, Korea, Afghanistan, Israel, Jordan, Australia etc. We should not yield to pressure tactics of these ‘non-State actors’. This depends on how strong Government we have and its willpower to keep such players at bay.

We have single integrated judicial system. This refers to hierarchy of Courts. Now a Court has given its verdict depending upon the facts and evidences brought before it. Aggrieved party may very well appeal to higher Court. They have that legal remedy available. Infact Dr. Sen’s mother has moved or resolved to move higher Court. She should be helped with proper aid and assistance to pursue the battle.

Therefore, taking extremes of ‘innocence’ or ‘guilt’ should be avoided. Let the judiciary work and let the truth prevail.

Saturday, January 1, 2011

महाराष्ट्र 'डीग्रेड"

पूर्वीच्या एका लेखात राजकारण्यांची, नेत्यांची नावे घेऊन स्पष्ट लेखन केले होते. त्यानंतर लगेचच ब्लॉग ‍‌हॅक झाला. अर्थात या दोन गोष्टींचा परस्परसंबंध कितपत असेल हा भाग वेगळा. परंतु जेव्हा अनेकांनी ईमेल करून, ‘कृपया नावे घेऊन घाणीत दगड मारण्यापेक्षा केवळ सूचक लेखन करावे, त्यातून नावे कळतातच’ हा भाव व्यक्त केला. तेव्हापासून शक्यतो व्यक्तींचे नाव न घेता लेखनाचा प्रयत्न.

दादोजी कोंडदेवांचा पुतळा लाल महालातून कापून काढण्याचा ठराव काही करंट्यांनी पुणे महानगरपालिकेत संमत केला. आणि त्यानुसार कार्यवाहीसुद्धा केली. दादोजी शिक्षक होते की नव्हते याहीपेक्षा ते कोणत्या जातीचे होते यावरून हा सारा प्रकार घडला आहे. वेडगळपणाची झाक असलेल्या काही नतद्रष्ट संघटना याच्यामागे आहेत. जातीय विद्वेष पसरवणे हेच ज्यांचे उद्दिष्ट आहे अशांकडून महाराष्ट्राला ‘Dgrade’ करणाऱ्या अशा घटना न घडल्या तरच नवल! ‘अठरापगड जातींना एकत्र करणाऱ्या’ हिंदूनृसिंहाच्या राज्यात असे लांडगे राज्यावर यावेत आणि त्यांनी हैदोस घालावा यापरते दुर्दैव कोणते?

आश्चर्य वाटते ते प्रत्येकाच्या भूमिकेचे. या लांडग्यांना विरोध करून पळता भुई थोडी करणे कठीण नव्हते. कित्येक जणांकडे अशी शक्ती आहे. सर्वप्रथम या राज्याचे शासन! पण ते स्वतःच जर जातीवर आधारलेले असेल तर अपेक्षा ठेवणेच फोल आहे. काहीजणांनी तर जाळपोळीचे ‘आदेश’च दिल्याचे ऐकिवात येते आहे. ‘अमुक ठिकाणी बसेस जाळा, दगडफेक करा, म्हणजे तणाव निर्माण होईल इ.’ कोंडदेव राहिले बाजूला! अर्थात असे ‘काळे-गोऱ्हे’ प्रत्येकच पक्षामाजी असतात! त्यांच्याकडे पोळ्या तयारच असतात..सामान्यांचे आणि कार्यकर्त्यांचे जळण घातले की झाली पोळी भाजून तयार! बाबासाहेब पुरंदऱ्यांना व्यासपीठावर हौसेने बसवणारे, कौतुक करणारे गप्प का? आम्ही बाबासाहेबांनी, गोनीदांनी, सरदेसायींनी सांगितलेला शिवेतिहास वाचत-ऐकत मोठे झालो. दादोजी कोंडदेव होतेच गुरु शिवरायांचे. पण कुठे आहेत बाबासाहेबांचे शिलेदार? एरवी राष्ट्रीयत्वाचा विचार करणाऱ्या आणि हिंदुत्वाचा हुंकार भरणाऱ्या काही स्वयंसेवी संघटनांनी या दुर्दैवी प्रकाराबद्दल एखादे निषेधाचे पत्रक काढल्याचेही ऐकिवात-पाहण्यात आले नाही (निदान माझ्यातरी!) याचेही सखेद आश्चर्य वाटते.

नगरपालिकेत ज्यांनी हा ठराव मांडून संमत करून घेतला त्यांना भ्रष्टाचार, अनागोंदी यावरून जनतेचे लक्ष दुसरीकडे वळवायचे आहे हे स्पष्ट आहे. तेव्हा जणू पापाचे शेवटचे काही घडे राहिलेत आणि तेही वेगाने भरण्याची सुरुवात केलेली दिसते. वाट पाहायची आता यांना त्यांची जागा दाखवण्याची.

तेव्हा सध्या आपण काहीच करू शकत नाही. खोली बंद करायची, महाराजांच्या तेजस्वी मुद्रेसमोर म्लानमुखाने नतमस्तक व्हायचे, दादोजींसाठी दोन अश्रुफुले वाहायची आणि आत खोलवर रुतलेला बाण मूकपणे सलत ठेवायचा...